अपनी मिसाल आप है वो बे-मिसाल है ये देखना है कौन मिरा हम-ख़याल है हर क़हक़हे में दर्द के सागर हैं तह-नशीं दीवाना देखने में तो आसूदा हाल है कब सब्ज़ा-ए-निशात है आसूदा-ए-नज़र हर सम्त सुर्ख़ सुर्ख़ सलीबों का जाल है पत्थर ब-दस्त मिलता है हर शख़्स शहर में आईना बन गए हैं तो बचना मुहाल है बर्बादी-ए-हयात पे 'महवर' हूँ ख़ुश बहुत बर्बादियों का मेरी उन्हें भी ख़याल है