अपनी नज़रें दर-ओ-दीवार पर अक्सर रखना अजनबी घर में क़दम सोच-समझ कर रखना कहीं फट जाए कलेजा न वुफ़ूर-ए-ग़म से अपनी पलकों में छुपा कर न समुंदर रखना इतना आसान नहीं उन को भुलाना दिल से सोच कर अपने कलेजे पे ये पत्थर रखना याद आता है वो मंज़र तिरे अफ़्साने का अपने महबूब को दुश्मन के बराबर रखना ख़्वाब में आएँगे पुर-नूर परिंदे लेकिन शर्त है साफ़ मगर ज़ेहन का बिस्तर रखना सौंप दी मैं ने तुम्हें मेहर-ओ-वफ़ा की कुंजी लौट आउँगा सलीक़े से मिरा घर रखना ऐ 'असर' अबरू फूलों की झुलस जाएगी तुम न शो'लों की हथेली पे गुल-ए-तर रखना