अपनी नाकाम तमन्नाओं का मातम न करो थम गया दौर-ए-मय-ए-नाब तो कुछ ग़म न करो और भी कितने तरीक़े हैं बयान-ए-ग़म के मुस्कुराती हुई आँखों को तो पुर-नम न करो हाँ ये शमशीर-ए-हवादिस हो तो कुछ बात भी है गर्दनें तौक़-ए-ग़ुलामी के लिए ख़म न करो तुम तो हो रिंद तुम्हें महफ़िल-ए-जम से क्या काम बज़्म-ए-जम हो गई बरहम तो कोई ग़म न करो बादा-ए-कोहना ढले साग़र-ए-नौ में 'फ़ितरत' ज़ौक़-ए-फ़रियाद को आज़ुर्दा-ए-मातम न करो
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