अपनी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा हो जैसे हम से इस शहर में हर एक ख़फ़ा हो जैसे सोचते चेहरों पे जलते हुए आसार-ए-हयात यक-ब-यक वक़्त का इरफ़ान हुआ हो जैसे ये धुँदलके ये दर-ओ-बाम का गम्भीर सुकूत चाँदनी रात में महताब लुटा हो जैसे तुझ से मिलने की तमन्ना तिरी क़ुर्बत का ख़याल रेग-ज़ारों में कोई फूल खिला हो जैसे वही ख़ूबी वही इख़्लास-ओ-मुरव्वत के निशाँ हैदराबाद कि इक शहर-ए-वफ़ा हो जैसे