अपनी रूदाद यूँ बयाँ हो जाए इक पतिंगा जले धुआँ हो जाए ख़ाक मिल जाए ख़ाक में मेरी या सितारों में ज़ौ-फ़िशाँ हो जाए उस की सूरत पे तब्सिरा कैसा आइना जिस से बद-गुमाँ हो जाए ये जहाँ ख़्वाब है मगर ऐसा आँख मूँदें तो राएगाँ हो जाए अपनी रुस्वाइयाँ मुझे मंज़ूर तू अगर मेरा राज़-दाँ हो जाए मेरी बे-ताबियाँ बयान हुईं अब तिरे ज़ब्त का बयाँ हो जाए