अपनी तदबीर न तक़दीर पे रोना आया देख कर चुप तिरी तस्वीर पे रोना आया क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाए थे हमें जब खुली आँख तो ता'बीर पे रोना आया अश्क भर आए जो दुनिया ने सितम दिल पे किए अपनी लुटती हुई जागीर पे रोना आया ख़ून-ए-दिल से जो लिखा था वो मिटा अश्कों से अपने ही नामे की तहरीर पे रोना आया जब तलक क़ैद थे तक़दीर पे हम रोते थे आज टूटी हुई ज़ंजीर पे रोना आया राह-ए-हस्ती पे चला मौत की मंज़िल पे मिला हम को इस राह के रहगीर पे रोना आया जो निशाने पे लगा और न पलट कर आया हम को 'नौशाद' उसी तीर पे रोना आया