अपनी तख़्लीक़ में अपना ही हुनर जागता है वक़्त लगता है मगर सच का असर जाता है बात छोटी ही अगर ढंग से कह दे कोई सुनने वाले में तजस्सुस का असर जागता है शीशा-पैकर हो तो पत्थर से निभाए रखो ये सलीक़ा जिसे आता है वो घर जागता है ज़िंदगी नाम है जीने का तो ज़िंदा सब हैं प्यार मिलता है तो ख़्वाबों का शजर जागता है प्यार का अपना मुक़द्दर है जुदाई 'सीमा' वर्ना हर रात ही आँचल में क़मर जागता है