अपनी ता'मीर में कब बाइस-ए-नुक़सान हूँ मैं बस ख़ुशी के लिए मुद्दत से परेशान हूँ मैं यूँ उठाए हुए फिरती है मुझे गाम-ब-गाम जैसे तक़दीर का बाँधा हुआ सामान हूँ मैं कितने चेहरों के ख़द-ओ-ख़ाल में चेहरा न रहा इज़्तिराबी तिरे किरदार पे हैरान हूँ मैं इतना दुख दे कि तिरा दर्द बदन झेल सके ज़िंदगी कुछ भी हो आख़िर तिरा मेहमान हूँ मैं तेज़ आँधी में किसी सूखे शजर की सूरत कौन समझेगा धड़कते हुए बे-जान हूँ मैं इस लिए तुझ से हिफ़ाज़त की दुआ है मालिक तेरी बख़्शी हुई रहमत का निगहबान हूँ मैं मेरे होने की कोई एक अलामत तो मिले जिस से महसूस किया जाए कि 'शीरान' हूँ मैं