अपनी तन्हाई का सामान उठा लाए हैं आज हम 'मीर' का दीवान उठा लाए हैं इन दिनों अपनी भी वहशत का अजब आलम है घर में हम दश्त-ओ-बयाबान उठा लाए हैं वुसअ'त-ए-हल्क़ा-ए-ज़ंजीर की आवाज़ के साथ हम वो क़ैदी हैं कि ज़िंदान उठा लाए हैं मेरे साँसों में कोई घोलता रहता है अलाव अपने सीने में वो तूफ़ान उठा लाए हैं इक नए तर्ज़ पे आबाद करेंगे उस को हम तिरे शहर की पहचान उठा लाए हैं ज़िंदगी ख़ुद से मुकरने नहीं देंगे तुझ को अपने होने के सब इम्कान उठा लाए हैं हम ने नुक़सान में इम्कान को रक्खा ही नहीं जितने मुमकिन थे वो नुक़सान उठा लाए हैं कुछ तो 'शाहिद' को भी निस्बत रही होगी उस से वो जो टूटा हुआ गुल-दान उठा लाए हैं