अपनी वहशत पे रो रहा हूँ मैं किस परिंदे का घोंसला हूँ मैं तेरी बीनाई ढूँढती है मुझे तेरी आँखों का मसअला हूँ मैं मुख़्तलिफ़ गीत मुझ से मर्वी हैं मुख़्तलिफ़ ख़्वाब देखता हूँ मैं तेरे लफ़्ज़ों में नूर भरता हूँ तेरी आवाज़ का दिया हूँ मैं कल मैं बेदार ख़्वाब-गाह में था आज चौखट पे जागता हूँ मैं तेरी मंज़िल अगर मोहब्बत है तेरे रस्ते का रास्ता हूँ मैं जब घुटन पर न बस चले 'आरिश' अपनी आँखों से फूटता हूँ मैं