अक़्ल की घास चर गए मामूँ है ये चर्चा सुधर गए मामूँ इस बुढ़ापे में तीर ये मारा इक हसीना पे मर गए मामूँ बन के बैठे हैं भीगी बिल्ली क्यों क्या मुमानी से डर गए मामूँ हो गए बंद खिड़की दरवाज़े जिस गली से गुज़र गए मामूँ कितने रुस्तम थे कितने तुर्रम ख़ाँ अब न जाने किधर गए मामूँ एक मिट्टी के ढेर की मानिंद देखी लड़की ढसर गए मामूँ मुझ को बतला के मंडी और नवा ख़ुद ही छक्के पे मर गए मामूँ एक हंगामा हो गया 'वाहिद' जब भी चुपके से घर गए मामूँ