अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके ख़जिल हो गुल से शबनम जूँ लहू नासूर से टपके मिरी आँखों से ख़ूनीं अश्क यूँ गिरते हैं पलकों पर लहू सूली के ऊपर जूँ सर-ए-मंसूर से टपके अगर कैफ़-ए-सुख़न मेरा निहाल-ए-ताक को पहुँचे सुराही शाख़ बन जावे शराब अंगूर से टपके अगर उस ज़ुल्फ़-मुश्क-आमेज़ से चुन्नी में बाल आवे अजब मैं इत्र-ओ-अंबर कासा-ए-नग़फ़ूर से टपके करूँ फ़रियाद रो रो यार को जब याद कर 'आजिज़' दम इस्राफ़ील का लोहू हो बाँग-ए-सूर से टपके