अपने अहबाब को अशआ'र सुनाने निकला मैं भी किन लोगों में सर अपना खपाने निकला बअ'द-ए-कोशिश भी न दीदार की सूरत निकली चाँद बदली से किसी और बहाने निकला इस को ता'लीम ओ मोहब्बत की ज़रूरत है अभी कम-सिनी में ये जो बे-चारा कमाने निकला चाँद को देख के तारा भी बदल कर पोशाक बज़्म-ए-अहबाब में रंग अपना जमाने निकला मेरी शोहरत का दिया शम्स न बन जाए कहीं कोई इस वास्ते तौक़ीर घटाने निकला