अर्ज़-ए-मुद्दआ करते क्यूँ नहीं किया हम ने ख़्वाहिशों को हसरत में ख़ुद बदल दिया हम ने नित नई उमीदों के टाँक टाँक कर पैवंद ज़िंदगी के दामन को उम्र-भर सिया हम ने रंज-ओ-ग़म उठाए हैं फ़िक्र-ओ-फ़न भी पाए हैं ज़िंदगी को जितना भी जी सके जिया हम ने सुब्ह का नया सूरज कुछ तो रौशनी लेगा शाम से जलाया है आस का दिया हम ने दाग़-ए-दिल की ज़रदारी मुफ़्त हाथ कब आई ख़ाक हो के पाया है राज़-ए-कीमिया हम ने