आरज़ू दिल में बनाए हुए घर है भी तो क्या उस से कुछ काम भी निकले ये अगर है भी तो क्या न वो पूछे न दवा दे न वो देखे न वो आए दर्द-ए-दिल है भी तो क्या दर्द-ए-जिगर है भी तो क्या आप से मुझ को मोहब्बत जो नहीं है न सही और ब-क़ौल आप के होने को अगर है भी तो क्या देर ही क्या है हसीनों की निगाहें फिरते मुझ पे दो दिन को इनायत की नज़र है भी तो क्या सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में दिल-ए-नादाँ तुझे उम्मीद-ए-सहर है भी तो क्या मैं ब-दस्तूर जलूँगा ये न होगी 'मुज़्तर' मेरी साथी शब-ए-ग़म शम-ए-सहर है भी तो क्या