आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था ख़्वाहिशें थीं सफ़-ब-सफ़ सामान जीने का न था क़र्ज़ था तेरा सो जीते-जी तुझे लौटा दिया ज़िंदगी वर्ना मुझे अरमान जीने का न था दोस्ती ज़हराब से की रंज-ओ-ग़म से की निबाह वर्ना ये माहौल मेरी जान जीने का न था ज़िंदगी तू छोड़ मेरा साथ मैं बे-ज़ार हूँ मेरा तेरा तो कोई पैमान जीने का न था मैं ने हँसने की अज़िय्यत झेल ली रोया नहीं ये सलीक़ा भी कोई आसान जीने का न था कुछ तिरी रहमत पे तकिया कुछ गुनाहों की कशिश वर्ना उस दुनिया में तो इंसान जीने का न था ज़ेहन की आवारगी मिन्नत-कश-ए-दुनिया न थी ज़िंदगी का भी 'मुजीबी' ध्यान जीने का न था