आरज़ूओं को अपनी कम न करो जीना चाहो तो कोई ग़म न करो हाथ आए ख़ुशी तो ख़ुश होलो दिल हो ग़मगीं तो आँख नम न करो जैसी मिल जाए जिस क़दर मिल जाए पी भी लो फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम न करो जैसी गुज़रे गुज़ारते जाओ साज़-ओ-सामाँ कोई बहम न करो लोग कहते फिरें तुम्हें क्या क्या आप अपने पे ये सितम न करो जी में जो आए वो लिखो साहब जो ज़माना कहे रक़म न करो