आरज़ू को सलाम करते हैं दिल का क़िस्सा तमाम करते हैं आ सकेगा न लब पे राज़-ए-इश्क़ हुस्न का एहतिराम करते हैं इस फ़रेब-ए-ख़याल के सदक़े आप मुझ से कलाम करते हैं ऐ फ़लक कुछ तो चैन लेने दे दो घड़ी को मक़ाम करते हैं ख़ाक भी अब नहीं शहीदों की क्यूँ वो अज़्म-ए-ख़िराम करते हैं सब ही देते हैं जान यूँ 'कैफ़ी' आप क्या ऐसा काम करते हैं