साफ़ बातों से हो गया मा'लूम होते हो मतलब-आश्ना मा'लूम कुश्ता तेग़-ए-निगह से कीजिएगा चश्म-ओ-अबरू से हो गया मा'लूम इब्तिदा ने मोहब्बत-ए-दिल की ये न थी हम को इंतिहा मा'लूम कुछ दहन ही नहीं है वो नापैद कमर-ए-यार भी है ना-मा'लूम दर तक उस के मिरी रसाई हो तुझ से ऐ बख़्त-ए-ना-रसा मा'लूम जब कहा रोके तुझ पे मरते हैं हँस के बोला वो बुत ख़ुदा-मा'लूम मेहरबाँ आज-कल है वो बे-मेहर उस में होती है कुछ दुआ मा'लूम तुम सुख़न-साज़ हो बड़े ऐ जान तर्ज़-ए-तक़रीर से हुआ मा'लूम जब मुअम्मे में ज़िक्र-ए-वस्ल किया बोला मतलब न कुछ हुआ मा'लूम बद-गुमाँ दुख़्त-ए-रज़ से वाइज़ हो हम को होती है पारसा मा'लूम ले के दिल वो करेगा बेदर्दी ये न ढंग उस का क़ब्ल था मा'लूम क़ाबिल-ए-इश्क़ ये हसीन नहीं इन दग़ा-बाज़ों से वफ़ा मा'लूम जब कहा मैं ने ओ तग़ाफ़ुल-केश हाल है मेरे इश्क़ का मा'लूम मिस्ल-ए-आईना हैरती हूँ क़दीम बोला लाखों हैं ऐसे क्या मा'लूम हाँ मगर हम को देखा तो है कहीं होते हो सूरत-आश्ना मा'लूम साबिक़ा जब तक ऐ 'क़लक़' न पड़े हाल इंसान का हो क्या मा'लूम