निगाह तेज़ शुऊ'र-ए-बुलंद रखते हैं हम अपना इश्क़ बहुत होश-मंद रखते हैं हम अपने साथ दिल-ए-दर्द-मंद रखते हैं कोई हो बज़्म उसे सर-बुलंद रखते हैं हमें ग़रज़ नहीं मुनइ'म है कौन हातिम कौन कुलाह-ए-क़ैस सर-ए-अर्जुमंद रखते हैं रफ़ीक़ों तुम ही नहीं पासबान-ए-शर्त-ए-वफ़ा कि हम भी उन से इरादत दो-चंद रखते हैं