वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था कल बदल जाएगी दुनिया मुझे मालूम न था हुस्न है मश्ग़ला-ए-ज़ुल्म को गहरा पर्दा पस-ए-पर्दा है अंधेरा मुझे मालूम न था इश्क़ वो शय है कि चरके भी मज़ा देते हैं वर्ना क़ातिल हैं हसीं क्या मुझे मालूम न था दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार कल ये कुछ और कहेगा मुझे मालूम न था झूटी उम्मीदों ने क्या क्या न हरे बाग़ लगाए वक़्त झोंका है हवा का मुझे मालूम न था जितने क़िस्मत के सहारे थे वो झूटे निकले है बंधी मुट्ठियों में क्या मुझे मालूम न था बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा घर तो मालूम था रस्ता मुझे मालूम न था राज़-ए-ग़म फ़ाश न हो इस लिए रोकी थी ज़बाँ चुप भी रह कर यही होगा मुझे मालूम न था दिल मज़े लेता है जिस ग़म के वो है काहिश-ए-जाँ ज़हर भी होता है मीठा मुझे मालूम न था इश्क़-आबाद के नाके ही से रुख़्सत हुए होश है ये दीवानों की दुनिया मुझे मालूम न था होगा इमरोज़ की सूरत में ज़ुहूर-ए-फ़र्दा वअ'दा यूँ रोज़ टलेगा मुझे मालूम न था आरज़ू हाँ भी हसीनों की नहीं होती है इन की हर बात है धोका मुझे मालूम न था