अस्बाब-ए-ज़िंदगी की हर इक चीज़ है गराँ बस एक ज़िंदगी है कि अर्ज़ां है आज-कल मश्शातगी-ए-फ़ल्सफ़ा-ए-मग़रिबी न पूछ ज़ुल्फ़-ए-ख़याल और परेशाँ है आज-कल सर-रिश्ता-ए-ख़याल हुआ जा रहा है गुम कुछ ऐसी उलझनों में मुसलमाँ है आज-कल क़ुदरत की रहबरी के तरीक़े अजीब हैं या'नी लिबास-ए-कुफ़्र में ईमाँ है आज-कल बे-ज़हमत-ए-शिकार ही खाएगा क्या उन्हें क्यूँ गुर्ग बकरियों का निगहबाँ है आज-कल रानाई-ए-ख़याल की गुल-कारियाँ गईं बस हम हैं और ख़्वाब-ए-परेशाँ है आज-कल मालूम हो रहा है कि मंज़िल क़रीब है कुछ तेज़-रौ सी उम्र-ए-गुरेज़ाँ है आज-कल