अश्क आँखों में डबडबाए हैं भूले अफ़्साने याद आए हैं हम ने दामन को तार-तार किया मौसम-ए-गुल ने गुल खिलाए हैं अक्सर औक़ात रोग़नी के लिए हम ने दिल के दिए जलाए हैं रंज बख़्शे हैं ऐसे अपनों ने हम को बेगाने याद आए हैं चंद-रोज़ा हयात की ख़ातिर ज़िंदगी-भर फ़रेब खाए हैं मय-कशो एक जाम ता'ज़ीमन हज़रत-ए-वाइ'ज़ आज आए हैं वक़्त ही का तो फेर है 'बिस्मिल' कल जो अपने थे अब पराए हैं