अश्क आँखों से पिया भी न बहाया हम ने आग को दिल में कुछ इस तरह छुपाया हम ने वो कभी अपने हुए और न वो ग़ैर हुए उन को खोया भी नहीं और न पाया हम ने दिल तो पहले ही से ज़ख़्मी है दुखी और न कर ऐ ज़माने तिरा हर बार उठाया हम ने हम से मिलते हैं वही दुश्मन-ए-जानी की तरह जिस किसी को भी यहाँ अपना बनाया हम ने सर झुकाए रहे इस वास्ते हर इक लम्हा ऐ ख़ुदा तुझ को हर इक ज़र्रे में पाया हम ने हादिसा क्या था 'किरन' कुछ न समझ में आया उम्र भर किस के लिए ख़ुद को गँवाया हम ने