अश्क हो आँखें भिगोना हो तो फिर आँख में सपना सलोना हो तो फिर कब तलक बख़िया-गरी का शौक़ भी उम्र भर सीना पिरोना हो तो फिर दोस्त इंटरनेट पर अच्छा चलो और गले जो लग के रोना हो तो फिर वो मिरी दिल-जूई को हाज़िर मगर उस का होना भी न होना हो तो फिर उस को पाने की तलब पर सोच लो उस को पाना उस को खोना हो तो फिर नाज़ुकी तो सीखी उस ने फूल से तितलियों का बोझ ढोना हो तो फिर यूँ जो ख़ुश हो उस को हँसता देख कर उस का हँसना उस का रोना हो तो फिर यूँ तो गजरों से कलाई सज गई चाह उस की चाँदी सोना हो तो फिर लोग कहते हैं कि दुनिया गोल है मुफ़्लिसी कोना-ब-कोना हो तो फिर 'अहमद' अपने दिल को ख़ुश करने चले और ग़म दिल का खिलौना हो तो फिर