अश्क को राएगाँ समझते हो तुम मिरा दुख कहाँ समझते हो सच बताओ फिर अपने बारे में गर मुझे राज़-दाँ समझते हो शब-गज़ीदा हूँ दिल-शिकस्ता नहीं आग हूँ मैं धुआँ समझते हो सुनते रहते हो क्यों तवज्जोह से क्या मिरी दास्ताँ समझते हो क्या समझते हो तुम अगर तुम भी इश्क़ को इम्तिहाँ समझते हो घूम कर देखते हो दुनिया को राज़-ए-कौन-ओ-मकाँ समझते हो मैं 'फ़िदा' हूँ तुम्हारी आँखों पर और तुम नीम-जाँ समझते हो