अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी सुल्ह की उन से गुफ़्तुगू है अभी दिल पशेमान-ए-जुस्तुजू है अभी खोई खोई सी आरज़ू है अभी चाक-ए-दिल पर न क्यूँ हँसी आए ये तो शाइस्ता-ए-रफ़ू है अभी मुस्कुरा लें हक़ीक़तें मुझ पर नक़्श-ए-बातिल की जुस्तुजू है अभी जल्वे बेताब और नज़र बेचैन नाम दोनों का जुस्तुजू है अभी ख़ैरियत दिल की पूछने वाले चैन से तेरी आरज़ू है अभी कैसे फाँदेगा बाग़ की दीवार तू गिरफ़्तार-ए-रंग-ओ-बू है अभी दम घुटा जाता है मोहब्बत का बंद ही बंद गुफ़्तुगू है अभी सैकड़ों आइने बदल डाले अपनी ही शक्ल रू-ब-रू है अभी गुल हैं आतिश-कदे ख़ुदी के 'सिराज' सर्द इंसान का लहू है अभी