ऐश-ओ-इशरत सब सही ये दम नहीं तो कुछ नहीं एक दुनिया हो तो क्या जब हम नहीं तो कुछ नहीं सुर्मगीं आँखों में अश्क-ए-ग़म नहीं तो कुछ नहीं दस्त-ए-रंगीं से मिरा मातम नहीं तो कुछ नहीं सुब्ह को शब के सताने का गिला-शिकवा अबस जब परेशाँ गेसू-ए-बरहम नहीं तो कुछ नहीं इश्क़ से थोड़ा बहुत तो है हर इंसाँ को लगाओ दिल में कुछ कुछ दर्द कुछ कुछ ग़म नहीं तो कुछ नहीं इस कमर पर इस नज़ाकत पर ये सीधी चाल क्यूँ बल नहीं तो कुछ नहीं कुछ ख़म नहीं तो कुछ नहीं उस की शोख़ी ने उसे ऐ दिल छुपा रक्खा कहाँ हश्र में वो फ़ित्ना-ए-आलम नहीं तो कुछ नहीं मिलने वालों का बहम मिल बैठना भी लुत्फ़ है जमघटे शब को सर-ए-ज़मज़म नहीं तो कुछ नहीं उस की रौनक़ और है उस का असर कुछ और है उन की महफ़िल में मिरा मातम नहीं तो कुछ नहीं प्यारे प्यारे अच्छे अच्छे मुँह से हाँ कह दे कभी तेरे सदक़े ये तिरी हर-दम नहीं तो कुछ नहीं बाल खोले तुम ने तो क्या चूड़ियाँ तोड़ीं तो क्या मेरे मरने का जो दिल से ग़म नहीं तो कुछ नहीं बात जिस की थी गई साक़ी वो उस के दम के साथ जाम-ए-जम हो भी तो क्या जब हम नहीं तो कुछ नहीं फूट कर रोना नहीं तो फूट ही जाएँ 'रियाज़' काम के जब दीदा-ए-पुर-नम नहीं तो कुछ नहीं