आप का ए'तिबार करता हूँ ये ख़ता बार बार करता हूँ बे-तअल्लुक़ सा इक तअ'ल्लुक़ है जिस तअल्लुक़ को प्यार करता हूँ हम हैं और जुस्तुजू-ए-मंज़िल है मुद्दतों इंतिज़ार करता हूँ कारवाँ ज़िंदगी का गुज़रा है इंतिज़ार-ए-ग़ुबार करता हूँ मौत ना-मो'तबर सी लगती है उम्र का ए'तिबार करता हूँ बात जब है कि शर्म रह जाए तौबा यूँ तो हज़ार करता हूँ अपने पर इख़्तियार है सब को याद बे-इख़्तियार करता हूँ लग़्ज़िशें ज़िंदगी की मत पूछो पहरों बैठा शुमार करता हूँ जुज़ नदामत के कुछ नहीं मिलता नज़रें जब ख़ुद से चार करता हूँ मेरा अपना ही साया है 'अशरफ़' जान जिस पर निसार करता हूँ