असीर-ए-हल्का-ए-ज़ंजीर-ए-जाँ हुआ है ये दिल किसी पे रोना कहाँ मेहरबाँ हुआ है ये दिल इक इज़्तिराब-ए-मुसलसल में कट रही है हयात शिकार-ए-साज़िश-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ हुआ है ये दिल जबीं ब-ख़ाक नहुम चश्म बर-सितारा-ए-सुब्ह कभी ज़मीन कभी आसमाँ हुआ है ये दिल बहुत दिनों से थी मद्धम चराग़-ए-दर्द की लौ ख़ुद अपनी आँच से शो'ला-ब-जाँ हुआ है ये दिल ख़ुमार-ए-हिज्र था ऐसा उखड़ गईं साँसें गिरफ़्त-ए-दर्द थी ऐसी फ़ुग़ाँ हुआ है ये दिल जहाँ ने देखा नहीं ऐसा गिर्या-ओ-मातम जब अपनी मौत पे नौहा-कुनाँ हुआ है ये दिल हमारा क्या है कि बस हम हैं एक मुश्त-ए-ग़ुबार खुली फ़ज़ा जो मिली पुर-फ़िशाँ हुआ है ये दिल अजब क़याम-ओ-सफ़र का है मरहला 'मोहसिन' ठहर गई है नज़र तो रवाँ हुआ है ये दिल