अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं बात जो दिल में है मेरे मेरे लफ़्ज़ों में नहीं इक ज़माना था कि इक दुनिया मिरे हमराह थी और अब देखूँ तो रस्ता भी निगाहों में नहीं कोई आसेब-ए-बला है शहर पर छाया हुआ बू-ए-आदम-ज़ाद तक ख़ाली मकानों में नहीं रफ़्ता रफ़्ता सब हमारी राह पर आते गए बात है जो हम बुरों में अच्छे अच्छों में नहीं अपने ही दम से चराग़ाँ है वगरना 'आफ़्ताब' इक सितारा भी मिरी वीरान शामों में नहीं