आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था वो कौन सा था वार जो मुझ पर न हुआ था चश्म-ए-सितम-ईजाद की वुसअ'त के मुक़ाबिल ये तेग़ तो क्या चर्ख़-ए-सितमगर न हुआ था पलकों ही पे तड़पा वो मिरे सोज़-ए-दरूँ से जो अश्क अभी बढ़ के समुंदर न हुआ था जब तक कि न देखी थी निगाहों की करामत मैं मुन्हरिफ़-ए-बादा-ओ-साग़र न हुआ था जब तक न था शह-ए-रग पे पड़ा साया-ए-अब्रू मैं वाक़िफ़-ए-शीरीनी-ए-ख़ंजर न हुआ था क्या जानें नज़र आया है क्या रंग-ए-मोहब्बत इतना कभी मुज़्तर दिल-ए-मुज़्तर न हुआ था ऐ 'ताज' अजब जोश उठा बहर-ए-करम में इक हर्फ़-ए-दुआ भी तो मुकर्रर न हुआ था