अताक़-ए-शब में सहर के चराग़ रौशन कर क़बा-ए-दिल ही नहीं दिल के दाग़ रौशन कर किसी तरीक़ से ताज़ा हवा गिरफ़्त में ला किसी सबील से अपना दिमाग़ रौशन कर मशाम-ए-जाँ में बसा ख़ैर-ओ-अम्न की ख़ुशबू फिर इस महक से मोहब्बत के बाग़ रौशन कर छिड़क के ख़ून रग-ए-दिल हक़ीर ज़र्रों पर सवाद-ए-मंज़िल-ए-जाँ के सुराग़ रौशन कर सलीब उठा के कभी कूचा-ए-सितम में भी चल जुनूँ की लौ से भी दश्त-ए-चराग़ रौशन कर रह-ए-हयात में वहम-ओ-गुमाँ के साए हैं नज़र में अज़्म-ओ-यक़ीं के अयाग़ रौशन कर कभी तक़द्दुस-ए-इंसान के तू गीत भी गा कभी तो दिल में मोहब्बत की आग रौशन कर