अतवार तिरे अहल-ए-ज़मीं से नहीं मिलते अंदाज़ किसी और हसीं से नहीं मिलते उन की भी ब-हर-हाल गुज़र जाती हैं रातें जो लोग किसी ज़ोहरा-जबीं से नहीं मिलते तुम मेहर सही माह सही हम से मिलो तो क्या अहल-ए-महक अहल-ए-ज़मीं से नहीं मिलते ऐ हज़रत-ए-दिल उन से बनी है न बनेगी क्यूँ आप किसी और हसीं से नहीं मिलते 'मिर्ज़ा' को भी पर्दा नहीं वाला-मनशों की अच्छा है जो उस ख़ाक-नशीं से नहीं मिलते