औज-ए-कमाल-ए-शेर है हम्द-ओ-सना-गिरी मुझ को सिखा गई है यही कुछ सुख़नवरी इस दौर-ए-फ़ित्ना-गर में मिरी एक बात सुन सब कुछ है सुल्ह हेच है ये जंग-ओ-दावरी लश्कर की फ़िक्र ताज का सौदा है शाह को दरवेश सिर्फ़ तालिब-ए-कुंज-ए-क़लंदरी रुख़ पर जो है ग़ुबार-ए-क़नाअत इसे न धो बेहतर नहीं है इस से कोई कीमिया-गरी बाज़ार-ए-जाँ में शौकत-ए-शाहाँ का ज़िक्र क्या दरबार में तो शर्त है इज़हार-ए-चाकरी ऐ दोस्त एक नुक्ता बताऊँ तुझे कि है इक़रार-ए-बंदगी में निहाँ राज़-ए-सरवरी 'आज़ाद' अश्क-हा-ए-फ़रावाँ की क़द्र कर अश्कों के नम से है तिरी किश्त-ए-सुख़नवरी