जहाँ निफ़ाक़ के शो'ले मिलें बुझा के चलो चराग़ अम्न-ओ-मुहब्बत का तुम जला के चलो तुम्हारे बा'द भी आएँगे क़ाफ़िले यारो मिलें जो राह में काँटे उन्हें हटा के चलो अभी तो काम इन्हें भी बहुत से करने हैं नुमूद-ए-सुब्ह है सोतों को भी जगा के चलो इशारा वक़्त का ये है कि ऐ जहाँ वालो नियाज़-ओ-नाज़ की तफ़रीक़ को मिटा के चलो भटक रहे हों जो राहों में देंगे तुम को दुआ बुझे चराग़ सर-ए-रहगुज़र जला के चलो तुम्हें भी ज़िंदगी-ए-जावेदाँ मयस्सर हो वफ़ा की राह में दिल को अगर मिटा के चलो मिले हैं होश-ओ-ख़िरद इस लिए तुम्हें 'साक़ी' जुनूँ की राह में होश-ओ-ख़िरद लुटा के चलो