मो'जिज़ा यूँ मशीन से निकला तूर इक दूरबीन से निकला उस कबूतर ने उड़ना सीख लिया वो परिंदा भी दीन से निकला उस के पैरों का फ़र्श बनने को ज़ीना अपनी ज़मीन से निकला मैं ने जिस पर ग़ुरूर-ओ-नाज़ किया शो'ला उस आस्तीन से निकला हाए हम रो दिए सर-ए-महफ़िल अपना दुश्मन कमीन से निकला रात फैला चुकी थी अंधेरे रोज़-ए-रौशन जबीन से निकला ग़ौर से देखिए तो हर चेहरा एक लफ़्ज़-ए-हसीन से निकला कुछ मसाला लगा कहानी को अस्ल किरदार सीन से निकला अंजुमन से मकान से दिल से एक बेचारा तीन से निकला