और अब ये दिल भी मेरा मानता है वो मेरी दस्तरस से मावरा है चलो कोई ठिकाना ढूँडते हैं हवा का ज़ोर बढ़ता जा रहा है मिरे दिल में है सहराओं का मंज़र मगर आँखों से चश्मा फूटता है सदा कोई सुनाई दे तो कैसे मिरे घर में ख़ला अंदर ख़ला है ज़माना हट चुका पीछे कभी का और अब तो सिर्फ़ अपना सामना है मैं चुप हूँ अब उसे कैसे बताऊँ कोई अंदर से कैसे टूटता है