और अभी वो बात नहीं थी By Ghazal << हर एक रात में अपना हिसाब ... मेरी तख़्लीक़ हुई जिस की ... >> और अभी वो बात नहीं थी पूरे चाँद की रात नहीं थी फ़ैसला अब आसान हुआ है शामिल मेरी ज़ात नहीं थी जीत के भी मैं हार गई हूँ उस की मात भी मात नहीं थी अंदर भी इक हब्स का मौसम बाहर भी बरसात नहीं थी क्यूँ पाला ये दुख 'रख़्शंदा' दिल की जब औक़ात नहीं थी Share on: