और जीते रहें कि मर जाएँ बोल ऐ ज़िंदगी किधर जाएँ अब तो हर साँस इस चमन में है तंग सूरत-ए-बू-ए-गुल बिखर जाएँ ये जनम तो हमें न रास आया शायद अगले जनम सँवर जाएँ कोई गुल-गश्त को न आएगा कहो फूलों से अब बिखर जाएँ उन की महफ़िल से उठ के आ तो गए सोचते हैं कि अब किधर जाएँ