और महक थी जो उस बाग़ की घास में थी उस के पाँव की ख़ुश्बू भी उस बास में थी तुझ बारिश ने तन फूलों से भर डाला ख़ाली शाख़ थी और इस रुत की आस में थी तू ने आस दिलाई मुझ को जीने की मैं तो साँसें लेती मिट्टी यास में थी याद तो कर वो लम्हे वो रातें वो दिन मैं भी तेरे साथ उसी बन-बास में थी हर पल तेरे साथ थी मैं कब दूर रही मैं ख़ुश्बू थी और तिरे एहसास में थी बारिश थी शब-भर और भीग रही थी मैं 'जानाँ' कैसी शिद्दत मेरी प्यास में थी