अव्वल तो ये धज और ये रफ़्तार ग़ज़ब है तिस पे तिरे पाज़ेब की झंकार ग़ज़ब है क्यूँकर न तुझे दौड़ के छाती से लगा लूँ फूलों का गले में तिरे ये हार ग़ज़ब है जब देखूँ हूँ करती है मिरे दिल को परेशाँ आशुफ़्तगी-ए-तुर्रा-ए-तर्रार ग़ज़ब है ऐ काश ये आँखें मुझे ये दिन न दिखातीं इस शौक़ पे महरूमी-ए-दीदार ग़ज़ब है ख़ुर्शीद का मुँह है कि तरफ़ हो सके उस से यानी वो बर-अफ़रोख़्ता रुख़्सार ग़ज़ब है मैं और किसी बात का शाकी नहीं तुझ से ये वक़्त के ऊपर तिरा इंकार ग़ज़ब है अब तक हरम-ए-वस्ल से महरम न हुए हम काबे में हिजाब-ए-दर-ओ-दीवार ग़ज़ब है गर एक ग़ज़ब हो तो कोई उस को उठावे रफ़्तार ग़ज़ब है तिरी गुफ़्तार ग़ज़ब है फ़रहाद बचा इश्क़ से ने क़ैस न वामिक़ जी ले ही के जाता है ये आज़ार ग़ज़ब है ऐ 'मुसहफ़ी' इस शौक़ से टुक बच के तू चलना सुनता है मियाँ वो बुत-ए-ख़ूँ-ख़ार ग़ज़ब है