अज़ाबों की रुत ने किया ऐसे तन्हा न आँखों में सपने न दिल में तमन्ना तिरी कम-सिनी के ये मौसम अजब हैं कभी तू है दुर्गा कभी तू है सीता मसीहा-सिफ़त उस की आँखें हैं लेकिन मिरे ज़ख़्म-ए-दिल से उसे वास्ता क्या जवानी रगों में अज़ाँ दे रही है मगर सोच कहती है रुक जा ख़ुदारा बता ज़ब्त का इम्तिहाँ और कब तक मैं कोई पयम्बर न कोई फ़रिश्ता धनक चाँद बदली कली फूल तितली ग़ज़ल में हैं रौशन कभी तू भी आ जा