अज़ल से नाज़-परवर हूँ ख़िराम-ए-नाज़-परवर का मिरी हस्ती भरा करती है दम आशोब-ए-महशर का किया है आज वा'दा किस ने आने का ख़ुदा जाने नज़र आता है चश्म-ए-शौक़ दरवाज़ा मिरे घर का लिए फिरता है साथ अपने ग़ुबार-ए-ख़ाक की सूरत मिरे सीने में हर जोश-ए-नफ़स झोंका है सरसर का सहर के साथ होगा चाक मेरा दामन-ए-हस्ती ब-रंग-ए-शम्अ बज़्म-ए-दहर में मेहमाँ हूँ शब भर का बनाई एक ही दोनों की सूरत काहिश-ए-ग़म ने गुमाँ होता है तार-ए-पैरहन पर जिस्म-ए-लाग़र का दिया मय्यत को मेरी ग़ुस्ल आब-ए-गिर्या ने मेरे हुआ एहसान भी मुझ पर तो अपने दीदा-ए-तर का ख़याल-ए-अहल-ए-दुनिया आ सके 'तौफ़ीक़' क्या दिल में नहीं ये आइना मुहताज तस्वीर-ए-सिकंदर का