अज़ल से तो अबद तक है गुज़ारे का सहारा दुख ख़ुदा ने साथ आदम के उतारा है ये सारा दुख इसी डर से किसी ग़म का मनाया ही नहीं मातम ज़माना ये न समझे कि अभी तक है तुम्हारा दुख जहाँ पर इज़्ज़त-ए-नफ़सी से बढ़ कर कुछ नहीं होता वहाँ समझे कोई कैसे तुम्हारा दुख हमारा दुख अभी आग़ाज़-ए-उल्फ़त है अभी मुमकिन पलटना है वगर्ना तुम भी चीख़ोगे हमारा दुख हमारा दुख मोहब्बत के सफ़ीने तो ग़मों से पार होते हैं वही उस पार उतरेगा है जिस का बस किनारा दुख