इश्क़ शो'ला न हुस्न शबनम है सब तिलिस्म-ए-सरिश्त-ए-आदम है अब ये मायूसियों का आलम है फ़र्त-ए-राहत भी शिद्दत-ए-ग़म है आज इस कोर दिल में ज़माने में कौन तेरी अदा का महरम है क्यूँ करे वो मसर्रतों की तलाश जिस की फ़ितरत ही ख़ूगर-ए-ग़म है इक क़यामत है तेरा हर अंदाज़ हर अदा फ़ित्ना-ए-मुजस्सम है आँख बदली हुई है दुनिया की जब से तेरी निगाह बरहम है मेरे ही दम से तेरी महफ़िल का जो भी ज़र्रा है जान-ए-आलम है अपनी तक़दीर की शिकायत क्या आप का इल्तिफ़ात ही कम है अपना सरमाया-ए-हयात 'अज़ीज़' दामन-ए-तर है चश्म-ए-पुर-नम है