ये इंकिशाफ़ चमन में हुआ बहार के बा'द इक और दौर भी है दौर-ए-ख़ुश-गवार के बा'द रहा तो हूँ मैं नशेमन में मुद्दतों लेकिन कभी बहार से पहले कभी बहार के बा'द दिल-ए-हज़ीं को शब-ए-ग़म बहुत फ़रेब दिए न आई नींद मगर तेरे इंतिज़ार के बा'द जमाल-ए-ग़ुन्चा-ओ-गुल पर निगाह कौन करे जमाल-ए-ग़ुन्चा-ओ-गुल है जमाल-ए-यार के बा'द बहार में जो मुझे रिंद कह रहे हैं 'अज़ीज़' वो पारसा भी कहेंगे मुझे बहार के बा'द