ब-जुज़ अंदोह-ओ-ग़म क्या और हिज्र-ए-यार में देखा यही पाया यही हर कूचा-ओ-बाज़ार में देखा जमाल-ए-हक़ तो हुस्न-ए-क़ामत-ए-दिलदार में देखा जलाल-ए-ख़ालिक़-ए-अकबर निगाह-ए-यार में देखा इधर दिल से चले और उस तरफ़ बहने लगे आँसू ये तूफ़ाँ दर्द-ओ-ग़म का चश्म-ए-दरिया-बार में देखा नमक छिड़का ब-जाए मरहम-ए-काफ़ूर क़ातिल ने जराहत का मज़ा क्या ज़ख़्म-ए-दामन-दार में देखा किसी पहलू किसी करवट न चैन आया न नींद आई ये अंदाज़-ए-सितम तीर-ए-जिगर-अफ़गार में देखा कलेजा क्यों न फट जाए हमारा इस मुसीबत पर कि अपने लख़्त-ए-दिल का दीदा-ए-ख़ूँबार में देखा अबस तुम ढूँडते हो दीदा-ए-बीमार में आँसू लहू कुछ भी मिरे जिस्म-ए-नहीफ़-ओ-ज़ार में देखा रहे आँसू न जब बाक़ी तो टुकड़े दिल के बह निकले ग़ज़ब का ये तमव्वुज दीदा-ए-ख़ूँबार में देखा नुक़ूश-ओ-मा’नी-ए-क़ुरआँ तरीक़-ए-काफ़िर-ओ-मोमिन ये सब कुछ आप के ख़ाल-ओ-ख़त-ए-रुख़्सार में देखा गिरे हम मिस्ल-ए-मूसा वादी-ए-उल्फ़त में ग़श खाकर जमाल-ए-हक़ जो हुस्न-ए-क़ामत-ए-दिलदार में देखा अजब क्या है बहार आई हो फिर सेहन-ए-गुलिस्ताँ में कि हम ने फूल ऐ बुलबुल तिरी मिंक़ार में देखा सँभलना हो गया दुश्वार मुझ को और ऐ 'हामिद' जो दिल को नोक-ए-तेग़-ए-अबरू-ए-ख़ुम्मार में देखा