बाद मरने के भी दुनिया में हो चर्चा मेरा ऐसी शोहरत की बुलंदी हो ठिकाना मेरा मैं हूँ इक प्रेम पुजारी ऐ मिरी जान-ए-हयात तू है मंदिर तू कलीसा तू ही का'बा मेरा मेरे बेटे की निगाहों में हैं कुछ ख़्वाब मिरे ज़िंदगी उस की है जीने का सहारा मेरा मौत भी चैन से आती है कहाँ इंसाँ को ज़ेहन में गूँजता ही रहता है मेरा मेरा अब भी रातों को मिरी नींद उचट जाती है आह इक चाँद को छूने का वो सपना मेरा अन-कही बात मिरी क्या वो समझ पाएँगे क्या मुकम्मल कभी हो पाएगा क़िस्सा मेरा सिलवटें वक़्त की पड़ने ही लगीं उस पे 'दिनेश' तुम ने देखा ही कहाँ ग़ौर से चेहरा मेरा