बाद मरने के कोई बोसा-ए-रुख़्सत देगा क्या ख़ुदा मुझ को भी ऐसी भली क़िस्मत देगा ज़िंदगी है ये मियाँ रंज-ओ-अलम तो होंगे जो गुज़ारेगा वो लाज़िम है कि क़ीमत देगा फ़र्ज़ी दुनिया से निकल और हक़ीक़त लिख दे शे'र परवाज़ करेगा तुझे इज़्ज़त देगा देख मायूस न हो कुफ़्र नहीं कर प्यारे बे-दिली छोड़ ख़ुदा तुझ को भी राहत देगा कर गई उम्र अकारत मिरी हाए हाए इक ग़लत-फ़हमी कि तू मुझ को मोहब्बत देगा कुल मिला के है असासा मिरा ये उम्र-ए-रवाँ रद नहीं होगी दुआ रब मिरा बरकत देगा मैं तो समझा था मोहब्बत का बुलावा है 'उमर' क्या ख़बर थी वो मुझे मौत की दावत देगा